मन में आशा,गति में धैर्य और
अस्तित्व की संपूर्णता में सफलता का विश्वास लिए
तुम बढ़ती चलो बिटिया जीवन-पथ पर नित्य नई आस लिए
देखना एक दिन सूरज तुम्हारे जैसा उगेगा
जब होगा तुममें वह सब जो सूरज में है
जब तुम्हारी स्मिति भी होगी
सूर्य सदृश शुचि और सर्वत्र विस्तृत
जब बिन कहे तुम्हारा रोम-रोम कह उठेगा
हाँ मैं ही तो हूँ निज पिता की प्रिय पालिता
प्रसन्नवदना,तेजरूपा,अनन्या शुचिस्मिता
हाँ…तुम बढ़ो बिटिया क्योंकि तुम्हें पानी हैं
अनगिनत मंजिलें…
अनकही,अनसुनी,अनजानी सफलताओं की
कि जिनकी प्राप्ति के कारण तुम बन सको प्रतिमान
स्वयं ही प्राप्ति और सफलता का और उससे भी अधिक
उस मन्स्संतुष्टि का…जो देती है…
तुम्हारे सहज मनस्वी,अनाविलऔर निष्कलुष मानस को
आत्मजा और जानकी होने का अखंड गौरव
हाँ इसलिए ही तुम बढ़ती रहो बिटिया
प्रगति और उजास के नित नवीन पथ पर
सत्यतः प्राची के पवित्र अंक से प्रकट होते
अदम्य ऊर्जा-संवाही नवोदित सूर्य की भांति
तुम बढ़ोगी तो मुझे यह भान होगा कि मैं
केवल पिता ही नहीं माँ भी बन गया हूँ
क्योंकि स्वयं के अंतस से स्वयं को उत्पन्न करना
कितना उदात्त्त,महनीय और शोभन होता है
इसे तो केवल माता,पृथ्वी,प्रकृति,वनस्पति और भाषा ही जानते हैं
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सब तुम्हारा निर्दोष स्नेह है बेटा…