बचो इनसे…

Kavita

सावधान…

चुनावों का मौसम आ गया है…

बचो…क्योंकि हत्यारे सड़कों पर दिखने लगे हैं…

तुम इन्हें नहीं पहचानते…

अरे ये ही हैं…जो तुम्हारे शहर,गाँव, गली तक आएँगे,

झूठी ख़ुशामद करेंगे तुम्हारी…

तुम्हें रिझाएंगे,वादे करेंगे तुमसे.. सुख-चैन देने का

और बदले में खुद सुखी होकर,

तुम्हारा सुख-चैन छीन ले जाएँगे…

बड़े भोले हो तुम…अब तक नहीं समझे…

ओह!तुम इन्हें नेता जो कहते हो…

अरे ये ही वे हत्यारे हैं…जिन्होंने हत्या की है…सेवा,समर्पण,आस्था, त्याग और बलिदान की…

इन्होंने ही हत्या की है तुम्हारी निरीहता,भोलेपन और विश्वास की…

तुम इन्हें गाँधी,नेहरू और सुभाष का उत्तराधिकारी कहते हो…

शायद तुम्हें नहीं पता कि इनका कायांतरण हो चुका है…

यह वोट, तुम्हारी बोली में इनकी सुविधाओं और लूट की सहज स्वीकृति है…

ये पहले तुम्हारे मुँह से अपनी बात कहेंगे और फिर करेंगे तुमपर जानलेवा हमला…

और तुम हमेंशा के लिए बन जाओगे गूंगे…

ये तुम्हारा कंठ काटकर ले जाएँगे…और करेंगे…अट्टहास

ये काट देंगे तुम्हारे हाथ और पैर… बना देंगे तुम्हें लूला और लंगडा…

क्या कहा?तुम्हें इनके पास हथियार नहीं दीखते…

अरे! इनकी बातें ही इनका सबसे बड़ा हथियार हैं…

ये तो तुम्हें भी अपना हथियार बना देंगे…

तुम ख़ुद ही मार बैठोगे अपनों को…और बन जाओगे अपराधी…

फिर ये तुम्हें फांसी पर चढ़ाएंगे…और मनाएंगे उत्सव…

क्योंकि ये हत्यारे हैं…बचो इनसे…

इनका चरित्र…बड़ा विचित्र है भाई…बचो इनसे…

 

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