मेरे देश तुम्हें क्या दूं मैं…

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मेरे देश तुम्हें क्या दूं मैं
जब देश प्रेम जगता था पहले तब लोग कहा करते थे
तन देता हूं मन देता हूं धन और यह जीवन देता हूं
मेरे देश तुम्हें क्या दूं मैं सोच रहा था बैठा बैठा रात को…।
निकलेगा जब नन्हा सूरज करने वंदन स्वतंत्रता के स्वर्ण प्रभात को
उस समय करूंगा क्या मैं कैसे देशभक्त कहलाऊंगा
मेरे देश तुम्हें क्या कल मैं परंपरा में कुछ अर्पण कर पाऊंगा
जागोगे कल सुबह सुबह जब तुम अगणित पुष्प हार तुम पर चढ़ते होंगे।
तेरे गौरव पर बलि जाते कितने ही सुंदर स्वर तेरी आराधना करते होंगे
कोई गीत गा रहा होगा कोई वाद्य बजाता होगा
ठीक उसी क्षण कोई सीमा पर तेरी खातिर मर मिटने को जाता होगा
तुम बहुत बड़े हो हे सुदेश अनगिनती रंग तुम्हारे हैं
तेरी जनमाला के शत कोटि पुष्प कुछ गौर और कुछ श्याम वर्ण
सब ही तो लाल तुम्हारे हैं…।
मैं भी हूं तेरा पुत्र कुटुंबी परिजन और स्वजन भी हूं
तेरी ही गरिमा महिमा से मंडित एक भारत जन भी हूं
तुम यदि हो सर्वाधिक विस्तृत लोकतंत्र, मैं लोकतंत्र उद्गाता हूं।
तेरे गौरव की भाषा में मैं भारत भाग्य विधाता हूं।
तुमने मुझको सर्वस्व दिया प्रतिदान कभी कुछ दिया नहीं मैंने
पाकर शरीर मन वाणी तुझसे तेरा समुचित सम्मान किया नहीं मैंने
कुछ काम न तेरे आया मैं, हूंआत्मग्लानि से भरा हुआ
तेरी वत्सलता से सिंचित होकर भी स्वमोह बंध से कसा हुआ।
जो तन के प्रति निर्मोही थे तुझ पर अपना तन वार गए
जो मन से अविचल,अविभाजित थे वे तुझको मन मंदिर में धार गए।
जिनके जीवन ही तुम थे वे तुम पर जीवन हार गए
तेरा तो तरण किया उनने वे निज जीवन भी तार गए
पर मेरी दुविधा सर्वथा भिन्न मैं हूं जीवन से परम खिन्न
पापी अपराधी अतिचारी हूं प्रत्युत अतुलित यशकामी हूं
देना न पड़े तुझको कुछ भी इस वंचकता का नामी हूं।
तन से है इतना मोह मुझे मैं तुझे नहीं हूं दे सकता
मन भी इतना है बटा हुआ इसको कैसे तुझको देता
धन को तो सब लालायित है धन भी है मेरे पास नहीं
लगता है अब इस जीवन में,कुछ देशभक्ति की आस नहीं
पर आज सत्य कहता तुझसे,यह मेरा एक निवेदन है
तूं सब का भाग्य विधाता है तू सबके हित जन गण मन है
तेरी छाती को रौंद रहे कुछ ऐसे भी सम्मानित हैं
तुझसे करते सम्मान प्राप्त तुझको करते अपमानित हैं
खा पीकर तेरा अन्न नीर तुझको दरिद्र भूखा कहते
तेरे टुकड़ों पर पल पलकर तेरे ही है टुकड़े करते
है मंडित तेरी संप्रभुता से पर निज प्रभुता का दम भरते
रह करके तेरे वसन बीच हैं तुझको ही नंगा करते।
तुम भी यह ले शपथ आज उनको नहिं क्षमा करेगा तू
अब तक तो तुमने बहुत सहा पर अब किंचित नहीं सहेगा तू
जिस दिन तू ऐसा करे भद्र,बस मुझको अपना स्वर देना
मैं उस दिन तेरी जय बोलूंगा,तुम निज भक्ति का वर देना।

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