वाराणसी वैभव

Kavita

(अनुभूतियों से बनारस को पहचानना)                                       

करें जहाँ पाँव खुद नर्तन,समझ लेना कि काशी है

हिलोरें खा रहा हो मन, समझ लेना कि काशी है…

अगर अनुभूत हो तुमको,कभी यदि साँस लेते ही,

फिज़ाओं में घुला चन्दन,समझ लेना कि काशी है…

बुलाए पास जब तुमको,कोई सजीली धुन मोहब्बत की,

जब गाए ताल पर धड़कन,समझ लेना कि काशी है…

यूँ तो यह जीवन,है काँटों से भरा जंगल,

जहाँ रहकर लगे मधुबन,समझ लेना कि काशी है…

जहाँ मौसम की अंगड़ाई,जहाँ घाटों की रंगीनी,

मिले आशीष गंगा का, समझ लेना कि काशी है…

मिलो गंगा की लहरों से,मिटें जब कष्ट और संकट

मिलें जब भोले भंडारी,समझ लेना कि काशी है…

जहाँ बैठीं हैं अन्नपूर्णा,जहाँ जीवित मदनमोहन

जहाँ मरना भी मंगल हो,समझ लेना कि काशी है…

जहाँ शव-भस्म भी पावन,जहाँ भक्ति हो जीवन-धन

मिले कोई नगरी जब ऐसी,समझ लेना कि काशी है…

जो दुःख से मुक्त हो प्रतिपल,सदा शिव से जो हो सुरभित

जहाँ जीवन हो वैरागी,समझ लेना कि काशी है…

जो साधक सर्वविद्या की,जो शोधक सब कलाओं की

जो पोषक सर्वजन की हो,समझ लेना कि काशी है…

जो सृष्टि भूतभावन की,जो पोषित अन्नपूर्णा से

जो रक्षित काल भैरव से, जो मुखरित मन्त्र-गीतों से

जो पति-गृह है भवानी का,समझ लेना कि काशी है…

जहाँ गिरिजा की स्वर-धारा औ बिसमिल्ला की शहनाई

शगुन मंगल का रचते हों,समझ लेना कि काशी है…

जो पहुँचो पुर पुरारी के, तो पूरी हो हर इक इच्छा

जहाँ काटें कष्ट बजरंगी, समझ लेना कि काशी है…

जो सरस भी है औ पावन भी, मनोहर है लुभावन भी

मिले जब हिंदू विश्वविद्यालय,समझ लेना कि काशी है…

यहीं तक साथ है अपना,अब आगे तुम बढ़े जाओ

जहाँ मिल जाए भव-मुक्ति,जहाँ एकत्र शिव-शक्ति

जहाँ पर घाट हो अस्सी,समझ लेना कि काशी है…

(बीएचयू के एक विद्यार्थी को अपनी यादों के बनारस को बताने के चक्कर में…अपने बनारस को अपनी तरह याद करते हुए….उसके फेसबुकीय अनुरोध की प्रेरणा से आनन-फानन में बनी कविता…दिनांक-13/09/2017 रात्रि-1:30)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *