हिंदी तुम भाव भरी अनुपम,जनमन कल्याणी भाषा हो ।
जो कोटि कंठ से फूट रही, वह लोकतंत्र की आशा हो।
तुम ही तो बसी हुई हो, अनगिन कवियों के छंदों में।
तुम ही तो बसती हो जननी, सब सुमधुर काव्य प्रबंधों में।
तुम सारस्वत भावों की धात्री, विद्वत जनमन अभिलाषा हो।
हो सूरदास का अमर कंठ, तुलसी की मानस भाषा हो।
इस पुण्य दिवस पर आज, हमारे श्रद्धा पुष्प समर्पण लो।
अपने हित अपने पुत्रों को, शुभ रचना का सुंदर वर दो।
आशीष हमें दो शब्दमयी, हम ऐसा कुछ नव रच जाऐं ।
यह विश्व तुम्हें जब याद करे, हम तुममें निज परिचय पाएँ।
अपने पुत्रों के मानस को, सुविचारों से समृद्ध करो।
मिट जाएं दोष, दुख, दंभ, पाप, हममें वह सर्जन भाव भरो।
देकर शुभ सर्जन की क्षमता, निज संतति पर उपकार करो।
हम हों सतपथ के अनुगामी, वह जीवन भाव प्रशस्त करो।
दे दो मीरा सा अमर प्रेम, दे दो तुलसी सा भक्ति भाव।
दे दो दिनकर सा देशराग, जयशंकर सा वाणी प्रभाव।
निज रचना सिंधु निमज्जन का, हमको आदेश प्रदान करो।
अपने उर संचित भावों का, हमको भी किंचित दान करो।
दे दो आशीष हमें माता,हम भारत हित कुछ कर जाएँ ।
सौ बार मिले यदि जीवन तो, भारत के वंशज कहलाएँ।
जब जन्म मिले इस वसुधा पर, तुम अभिव्यक्ति का साधन होना।
जब मृत्यु घेर ले प्राणों को, तुम अंतिम आराधन बनना।
निज स्नेह युक्त श्रद्धा प्रसून, हम तुम्हें समर्पित करते हैं।
हे राष्ट्र कंठ की वाणी हम, तेरा शत वंदन करते हैं।
तुझको अभिनंदन करते हैं…।
पीयूष रंजन राय