भारतीय ज्ञान परंपरा के अविभाज्य अंग उपनिषद् ग्रंथों में सर्वप्रमुख उपनिषद् है-कठोपनिषद। इसी उपनिषद् के प्रथम अध्याय की द्वितीय और तृतीय वल्लियों में आत्मज्ञान या ब्रह्मविद्या का निरूपण मृत्यु के देवता यम और भारतकी ज्ञात पांडित्य परंपरा के सबसे बड़े ज्ञान-पिपासु नचिकेता के मध्य संवाद के माध्यम से किया गया है।नचिकेता एक ऋषि कुलोत्पन्न मेधावी बालक थे,उनके पिता का नाम वाजश्रवस था।एक बार उन्होंने अपने पिता को विश्वजित नामक यज्ञीय अनुष्ठान के उपरांत उपस्थित ब्राह्मणों को गो-दान करते देखा।इस आयोजन के प्रति मन में एक सहज औत्सुक्य का भाव लिए नचिकेता की दृष्टि जब सहसा अपने पिता की ओर गई तब नचिकेता ने लक्ष्य किया कि वे बूढ़ी,रुग्णऔर दूध न देने वाली गायों को ब्राह्मणों को दान कर रहे हैं और दुधारू तथा पुष्ट गायों को उनके(नचिकेता के)लिए छोड़ दे रहे हैं।यद्यपि नचिकेता अत्यंत पितृभक्त थे फिर भी अब अवस्थाजन्य बालसुलभ चपलता से उन्होंने अपने पिता से प्रश्न किया कि तब आप मुझे किसको देंगे? वस्तुतः अटपटे और विचित्र-से लगने वाले इस प्रश्न में बालक नचिकेता की गंभीर जिज्ञासा थी। उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि जिस विश्वजित नामक यज्ञ का अनुष्ठान उनके पिता ने किया है उसके नियमानुसार तो यजमान अपना सर्वस्व दान कर देता है औरअपने तथा कुटुम्बियों के लिए भी कुछ नहीं रखता।नचिकेता को यह समझते देर न लगी कि पुत्र-मोह के कारण उनके पिता ने ऐसा किया है।नचिकेता व्याकुल हो गए,उनके प्रति पिता की यह अंध आसक्ति उनको नरक का भोग कराएगी।अब नचिकेता ने अपने पिता को बचाने की ठानी।पिता की कीर्ति को कलंकित होने से बचाने का विचार करते नचिकेता को अचानक यह बात सूझी कि जिसके प्रति वृथा मोह के मन में उत्पन्न हो जाने के कारण उनके पिता ने यह पापकर्म किया है यदि उसे ही दान में दे दिया जाए तो सारी समस्या ही समाप्त हो जाएगी।उन्होंने पुनः अपने पिता से वही प्रश्न किया कि आप मुझे किसको देंगे?उनके पिता मौन रहे,जब नचिकेता ने वही प्रश्न कई बार दोहराया तो अत्यंत खीझ भरे स्वर में पिता ने नचिकेता को उत्तर दिया- मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ।पिता के इन क्रोधपूर्ण वचनों को सुनकर भी नचिकेता विचलित नहीं हुए अपितु नचिकेता को लगा कि उनके वार्तालाप का मर्म समझे बिना भी यदि उनके पिता ने ऐसा कह दिया तो अब उनके वचनों का पालन न करने से उन पर असत्य भाषण का एक अतिरिक्त कलंक आरोपित हो जाएगा।नचिकेता ने पिता के वचनों को सत्य करने के लिए मृत्यु के देवता यम के पास जाने का निश्चय कर लिया।अपने पिता से विदा लेते हुए नचिकेता ने कहा कि आप मेरा मोह न करें क्योंकि जिस प्रकार पक जाने पर खेती को काट लिया जाता है उसी प्रकार मनुष्य की जीवनावधि भी पूर्वनिर्धारित है अतः अत्यंत छुद्र -से इस नश्वर जीवन के परिरक्षण के लिए यदि बुद्धिमान मनुष्य असत्यभाषण का दोषी बने तो यह कदापि उचित नहीं। एक कष्ट-साध्य यात्रा के उपरांत जब नचिकेता यमलोक पहुँचे तो उस समय यमराज की अनुपस्थिति के कारण बालक नचिकेता को यमदेव की प्रतीक्षा में तीन रातें निराहार रहकर बितानी पड़ीं।जब तीन दिन बाद यमराज लौटे और नचिकेता की भेंट उनसे हुई तो बालक नचिकेता की पितृ-भक्ति से प्रसन्न होकर यम ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक नचिकेता से उनके द्वारा निराहार रह कर बिताई गई तीन रातों के बदले तीन वर मांगने के लिए कहा।नचिकेता ने प्रथम वर के रूप में अपने खिन्न,क्रुद्ध और विक्षुब्ध पिता की शांति के लिए पितृ-परितोष नामक वर माँगा द्वितीय वर के रूप में उन्होंने यम से स्वर्ग का साधन करने वाले अग्नि विज्ञान अर्थात् यज्ञ-विद्या का ज्ञान माँगा।तृतीय वर के रूप में महामना नचिकेता ने मोक्ष के साधन रूप, मृत्यु का रहस्य-भेदन करने वाले आत्मज्ञान को देने की प्रार्थना की।इस प्रकार मृत्यु के रहस्य को जानने वाले वे सृष्टि के पहले देहधारी बने।